अपठित काव्यांश
अपठित काव्यांश अपठित काव्यांश किसी कविता का वह अंश होता है, जो पाठ्यक्रम में शामिल पुस्तकों से नहीं लिया जाता है। इस अंश को छात्रों द्वारा पहले नहीं पढ़ा गया होता है।
अपठित काव्यांश का उद्देश्य काव्य पंक्तियों का भाव और अर्थ समझना, कठिन शब्दों के अर्थ समझना, प्रतीकार्थ समझना, काव्य सौंदर्य समझना, भाषा-शैली समझना तथा काव्यांश में निहित संदेश। शिक्षा की समझ आदि से संबंधित विद्यार्थियों की योग्यता की जाँच-परख करना है।
अपठित काव्यांश पर आधारित प्रश्नों को हल करने से पहले काव्यांश को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए तथा उसका भावार्थ और मूलभाव समझ में आ जाए। इसके लिए काव्यांश के शब्दार्थ एवं भावार्थ पर चिंतन-मनन करना चाहिए। छात्रों को व्याकरण एवं भाषा पर अच्छी पकड़ होने से यह काम आसान हो जाता है। यद्यपि गद्यांश की तुलना में काव्यांश की भाषा छात्रों को कठिन लगती है। इसमें प्रतीकों का प्रयोग इसका अर्थ कठिन बना देता है, फिर भी निरंतर अभ्यास से इन कठिनाइयों पर विजय पाई जा सकती है।
अपठित काव्यांश संबंधी प्रश्नों को हल करते समय निम्नलिखित प्रमुख बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए –
- काव्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना और उसके अर्थ एवं मूलभाव को समझना।
- कठिन शब्दों या अंशों को रेखांकित करना।
- प्रश्न पढ़ना और संभावित उत्तर पर चिह्नित करना।
- प्रश्नों के उत्तर देते समय प्रतीकार्थों पर विशेष ध्यान देना।
- प्रश्नों के उत्तर काव्यांश से ही देना; काव्यांश से बाहर जाकर उत्तर देने का प्रयास न करना।
- उत्तर अपनी भाषा में लिखना, काव्यांश की पंक्तियों को उत्तर के रूप में न उतारना।
- यदि प्रश्न में किसी भाव विशेष का उल्लेख करने वाली पंक्तियाँ पूछी गई हैं, तो इसका उत्तर काव्यांश से समुचित भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ ही लिखना चाहिए।
- शीर्षक काव्यांश की किसी पंक्ति विशेष पर आधारित न होकर पूरे काव्यांश के भाव पर आधारित होना चाहिए।
- शीर्षक संक्षिप्त आकर्षक एवं अर्थवान होना चाहिए।
- अति लघुत्तरीय और लघुउत्तरीय प्रश्नों के उत्तर में शब्द सीमा का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।
- प्रश्नों का उत्तर लिखने के बाद एक बार दोहरा लेना चाहिए ताकि असावधानी से हुई गलतियों को सुधारा जा सके।
काव्यांश को हल करने में आनेवाली कठिनाई से बचने के लिए छात्र यह उदाहरण देखें और समझें –
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है-बालहठ, बच्चों के व्यवहार एवं मनोभावों का कुशल चित्रण।
प्रश्नः 2.
दीना का लाल कौन-सा खिलौना पाने के लिए मचल रहा था?
उत्तरः
दीना का लाल वह खिलौना पाने के लिए मचल रहा था, जिससे राजकुमार खेल रहा था।
प्रश्नः 3.
माँ जो खिलौना उसे दे रही थी वह किससे बना था?
उत्तरः
माँ उसे जो खिलौना दे रही थी, वह मिट्टी का बना था।
प्रश्नः 4.
माँ दुखी क्यों हो उठी? वह बच्चे को क्या समझा रही थी?
उत्तरः
अपने बच्चे द्वारा राजकुमार का सोने से बना खिलौना पाने की ज़िद करने के कारण माँ दुखी हो उठी। वह बच्चे को समझा रही थी कि, तू इसी खिलौने से खेल, क्योंकि राजा के घर भी तो यह खिलौना नहीं है।
प्रश्नः 5.
बच्चा क्या तर्क देकर बहलाने की बात कर रहा था? अपनी माँग पूरी होते न देखा, तो उसने क्या किया?
उत्तरः
राजा के घर मिट्टी का खिलौना कभी नहीं, इससे राजकुमार खेलता है। यह सुनकर बच्चे को लगता है कि माँ उसे बहका रही है। अपनी माँग पूरी न होते देख उसने मिट्टी के खिलौने को मिट्टी में फेंक दिया।
उदाहरण (उत्तर सहित)
1. निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए –
विषुवत रेखा का वासी जो,
जीता है नित हाँफ-हाँफ कर
रखता है अनुराग अलौकिक
वह भी अपनी मातृभूमि पर
ध्रुववासी, जो हिम में तम में
जी लेता है काँप-काँपकर
वह भी अपनी मातृभूमि पर,
कर देता है प्राण निछावर
तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग सी,
सुखद सकल विभवों की आकर,
धरा शिरोमणि मातृभूमि में,
धन्य हुए जीवन पाकर
तुम जिसका जल-अन्न ग्रहण कर,
बड़े हुए लेकर जिसका रज,
तन रहते कैसे तज दोगे,
उसको, हे वीरों के वंशज॥
जब तक साथ एक भी दमं हो,
हो अवशिष्ट एक भी धड़कन,
रखो आत्म-गौरव से ऊँची.
पलकें, ऊँचा सिर, ऊँचा मन। (-रामनरेश त्रिपाठी)
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है-भारतभूमि का गुणगान एवं मातृभूमि से लगाव रखते हुए स्वाभिमान से जीना।
प्रश्नः 2.
‘वीरों के वंशज’ किसे कहा गया है?
उत्तरः
‘वीरों के वंशज’ भारतीयों को कहा गया है।
प्रश्नः 3.
‘तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग-सी’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तरः
तुम तो हे प्रिय बंधु! स्वर्ग-सी में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 4.
काव्यांश के आधार पर भारतभूमि की विशेषता लिखिए।
उत्तरः
भारतभूमि स्वर्ग के समान सुंदर तथा सभी सुखों का भंडार है। यह धरा की शिरोमणि है। इस पर जन्म लेने वालों का जीवन धन्य हो जाता है।
प्रश्नः 5.
‘विषुवत रेखा का वासी’ और ध्रुववासी अपनी मातृभूमि के प्रति किस तरह लगाव प्रकट करते हैं ?
उत्तरः
विषुवत रेखा पर रहने वाले वहाँ पड़ने वाली भयंकर गरमी के कारण हाँफ-हाँफकर जीते हैं और ध्रुववासी बरफ़ में काँप-काँप कर जीते हैं, पर वे भी मातृभूमि पर हँसते हुए जान दे देते हैं और मातृभूमि से लगाव प्रकट करते हैं।
2. चाहे जिस देश प्रांत पुर का हो
जन-जन का चेहरा एक!
एशिया की, यूरोप की, अमरीका की
गलियों की धूप एक।
कष्ट-दुख संताप की,
चेहरों पर पड़ी हुई झुर्रियों की रूप एक!
जोश में यों ताकत से बँधी हुई
मुट्ठियों का एक लक्ष्य!
पृथ्वी के गोल चारों ओर के धरातल पर
है जनता का दल एक, एक पक्ष।
जलता हुआ लाल कि भयानक सितारा एक,
उद्दीपित उसका विकराल-सा इशारा एक।
गंगा में, इरावती में, मिनाम में
अपार अकुलाती हुई,
नील नदी, आमेजन, मिसौरी में वेदना से गाती हुई,
बहती-बहाती हुई जिंदगी की धारा एक;
प्यार का इशारा एक, क्रोध का दुधारा एक।
पृथ्वी का प्रसार
अपनी सेनाओं से किए हुए गिरफ़्तार,
गहरी काली छायाएँ पसारकर,
खड़े हुए शत्रु का काले से पहाड़ पर
काला-काला दुर्ग एक,
जन शोषक शत्रु एक।
प्रश्नः 1.
‘जन-जन का चेहरा एक’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तरः
कवि यह कहना चाहता है कि शोषण से मुक्ति पाने के लिए संघर्ष करने वाला हर व्यक्ति एक जैसा है, वह चाहे जिस देश का हो।
प्रश्नः 2.
‘मुठियों का एक लक्ष्य’ में कवि ने किस लक्ष्य की ओर संकेत किया है?
उत्तरः
‘मुट्ठियों का लक्ष्य एक’ में कवि ने शोषण से मुक्त होने के लक्ष्य की ओर संकेत किया है।
प्रश्नः 3.
‘अपार अकुलाती हुई’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तरः
‘अपार अकुलाती हुई’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 4.
‘गलियों का धूप एक’ का आशय स्पष्ट करते हुए बताइए कि इस धूप ने लोगों पर क्या असर डाला है?
उत्तरः
‘गलियों की धूप एक’ का आशय है-लोगों के कष्ट, दुख पीड़ा एक जैसी है, जिसका आक्रोश उनके चेहरों पर देखा जा सकता है। इस कारण वे शोषण से मुक्त होने के लिए उठ खड़े हुए हैं।
प्रश्नः 5.
कवि को नदियों में क्या बहता दिखाई दे रहा है और क्यों?
उत्तरः
कवि को नदियों में लोगों का दुख संताप और पीड़ा बहती हुई दिखाई दे रही है, क्योंकि गंगा-इरावती, नील, अमेजन अर्थात् पूरी दुनिया में शोषितों को कहीं भी देखा जा सकता है।
3. जब बहुत सुबह चिड़िया उठकर,
कुछ गीत खुशी के गाती हैं।
कलियाँ दरवाज़े खोल-खोल,
जब झुरमुट से मुसकाती हैं।
खुशबू की लहरें जब घर से,
बाहर आ दौड़ लगाती हैं,
हे जग के सिरजनहार प्रभो!
तब याद तुम्हारी आती है!!
जब छम-छम बूंदें गिरती हैं,
बिजली चम-चम कर जाती है।
मैदानों में, वन-बागों में,
जब हरियाली लहराती है।
जब ठंडी-ठंडी हवा कहीं से,
मस्ती ढोकर लाती है।
हे जग के सिरजनहार प्रभो!
तब याद तुम्हारी आती है!!
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है- वातावरण की सुंदरता देखकर प्रसन्न होना और इस सुंदरता के लिए प्रभु को याद करना।
प्रश्नः 2.
सवेरे-सवेरे खुशी के गीत कौन गाती हैं ?
उत्तरः
सवेरे-सवेरे चिड़ियाँ खुशी के गीत गाती हैं।
प्रश्नः 3.
‘कलियाँ दरवाज़े खोल-खोल, जब झुरमुट से मुसकाती हैं, में निहित अलंकार का नाम लिखिए।
उत्तरः
‘कलियाँ दरवाज़े खोल-खोलकर, जब झुरमुट से मुसकाती हैं’ में मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्नः 4.
प्रातः काल को मनोरम बनाने में हवा का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
प्रात:काल हवा खुशबू की लहर लेकर एक घर से दूसरे घर की ओर दौड़ती है और वन-बागों से ठंडक और मस्ती ठोकर लाती है, जिससे प्रात:काल मनोरम बन जाता है।
प्रश्नः 5.
ठंडी हवा चलने से पहले वातावरण में हुए परिवर्तनों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
ठंडी हवा चलने से पहले आसमान से छम-छम बूंदें गिरती हैं, बिजली चम-चम चमकती है, मैदान, वन-बाग में हरियाली लहराने लगती है।
4. क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो।
उसको क्या, जो दंतहीन
विषहीन विनीत सरल हो।
तीन दिवस तक पंथ भागते
रघुपति सिंधु किनारे।
बैठे पढ़ते रहे छंद
अनुनय के प्यारे-प्यारे।
उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से।
सिंधु देह धर ‘त्राहि-त्राहि’
करता आ गिरा शरण में।
सच पूछो तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
संधि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की .
प्रश्नः 1.
क्षमा करना किस भुजंग को शोभा देता है ?
उत्तरः
क्षमा करना उस भुजंग को शोभा देता है जो विषधर होता है।
प्रश्नः 2.
‘विषहीन विनीत सरल हो’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तरः
‘विषहीन, विनीत सरल हो’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
किसके संधि वचन संपूज्य होते हैं ?
उत्तरः
जिनमें विजय पाने की क्षमता हो, उनके संधि-वचन पूजने योग्य होते हैं।
प्रश्नः 4.
समुद्र की मर्यादा बनाए रखने हेतु राम ने क्या किया? इसका समुद्र पर क्या असर हुआ?
उत्तरः
समुद्र की मर्यादा बनाए रखने हेतु –
(क) राम समुद्र से रास्ता देने का अनुरोध करते रहे।
(ख) तीन दिन तक धैर्यपूर्वक समुद्र के उत्तर की प्रतीक्षा करते रहे।
प्रश्नः 5.
राम के शर से पौरुष की ला कब धधक उठी? इसका क्या परिणाम रहा?
उत्तरः
राम के शर से पौरुष की ज्वाला उस समय धधक उठी, जब तीन दिनों तक अनुरोध करने के बाद भी समुद्र ने कोई जवाब नहीं दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि राम ने बाण मारा और समुद्र ‘बचाओ-बचाओ’ कहता हुआ राम के चरणों में आ गिरा
5. सुरपति के हम ही हैं अनुचर जगतप्राण के भी सहचर,
मेघदूत की सजल कल्पना चातक के चिर जीवनधर;
मुग्ध शिखी के नृत्य मनोहर सुभग स्वाति के मुक्ताकर;
विहग वर्ग के गर्भ विधायक, कृषक बालिका के जलधर!
जलाशयों में कमल-दलों-सा हमें खिलाता नित दिनकर,
पर बालक-सा वायु सकल दल बिखरा देता चुन सत्वर;
लघु लहरों के चल पलनों में हमें झुलाता जब सागर,
वही चील-सा झपट, बाँह गह, हमको ले जाता ऊपर!
भूमि गर्भ में छिप विहंग से, फैला कोमल रोमिल पंख,
हम असंख्य अस्फुट बीजों में, सेते साँस, छुड़ा जड़ पंक,
विपुल कल्पना-से त्रिभुवन की, विविध रूप धर, भर नभ अंक,
हम फिर क्रीड़ा कौतुक करने, छा अनंत उर में निःशंक।
कभी चौकड़ी भरते मृग-से भू पर चरण नहीं धरते,
मत्त मतगंज कभी झूमते, सजग शशक नभ को चरते,
कभी कीश-से अनिल डाल में, नीरवता से मुँह भरते,
वृहद् गृद्ध-से विहग छंदों को बिखराते नभ में तैरते।
कभी अचानक, भूतों का-सा प्रकटा विकट महा आकार,
कड़क-कड़क, जब हँसते हम सब थर्रा उठता है संसार,
फिर परियों के बच्चों से हम सुभग सीप के पंख पसार,
समुद्र तैरते शुचि ज्योत्सना में, पकड़ इंदु के कर सुकुमार।
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव बादलों के रूप सौंदर्य और क्रिया-कलाप हैं।
प्रश्नः 2.
‘वही चील-सा झपट, बाँह गह, हमको ले जाता ऊपर’ में कौन-सा अलंकार है?
उत्तरः
उक्त पंक्ति में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
बादल किनके नौकर और किसके जीवनधर हैं ?
उत्तरः
बादल, देवताओं के नौकर और पपीहा नामक पक्षी के जीवनधर हैं।
प्रश्नः 4.
सूरज और सागर बादल के साथ क्या-क्या कार्य व्यवहार करते हैं ?
उत्तरः
सूरज बादलों को जलाशयों में खिले कमल दल की भाँति खिलाता है और सागर उसे छोटी-छोटी लहरों के पालने पर झुलाकर आनंदित करता है।
प्रश्नः 5.
बादलों का भूत-सा आकार कब और कैसे डराता है ?
उत्तरः
बादलों का भूत-सा आकार तब डराता है, जब वे महाकार में आसमान में छा जाते हैं और कड़क कर हँसते हैं तो सारा जग भयभीत हो जाता है।
6. ओ नए साल, कर कुछ कमाल, जाने वाले को जाने दे.
दिल से अभिनंदन करते हैं, कुछ नई उमंगें आने दे।
आने जाने से क्या डरना, ये मौसम आते-जाते हैं,
तन झुलसे शिखर दुपहरी में कभी बादल भी छा जाते हैं।
इक वह मौसम भी आता है, जब पत्ते भी गिर जाते हैं,
हर मौसम को मनमीत बना, नवगीत खुशी के गाने दे।
जो भूल हुई जा भूल उसे, अब आगे भूल सुधार तो कर,
बदले में प्यार मिलेगा भी, पहले औरों से प्यार तो कर,
फूटेंगे प्यार के अंकुर भी, वह जमीं ज़रा तैयार तो कर,
भले जीत का जश्न मना, पर हार को भी स्वीकार तो कर,
मत नफरत के शोले भड़का, बस गीत प्यार के गाने दे।
प्रश्नः 1.
काव्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तरः
काव्यांश का शीर्षक है-नए साल का अभिनंदन।
प्रश्नः 2.
‘वह ज़मीं ज़रा तैयार तो कर’ पंक्ति में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तरः
‘वह ज़मीं ज़रा तैयार तो कर’ पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
कवि नए साल से क्या अपेक्षा रखता है?
उत्तरः
कवि नए साल से यह अपेक्षा रखता है कि वह कुछ विशेष करे और सबके लिए नई उमंगें लाए।
प्रश्नः 4.
‘आने-जाने से क्या डरना’ के माध्यम से कवि किसके आने-जाने की बात कहता है? इसके लिए प्रकृति से किन-किन उदाहरणों का सहरा लेता है ?
उत्तरः
आने-जाने के माध्यम से कवि ने सुख और दुख के आने-जाने की बात कही है। इसके लिए उसने मौसमों के बदलते
रहने, दोपहरी में बादल छाने, पतझड़ के आने-जाने के उदाहरणों का सहारा लिया है।
प्रश्नः 5.
कवि ने कविता में मनुष्य के लिए जो सीख दी है, उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
कविता के माध्यम से कवि ने मनुष्य को सीख दी है कि
(क) पीछे हो चुकी भूलों का सुधार करें।
(ख) दूसरों से प्यार पाने के लिए उनसे प्यार करें।
(ग) दुख और सुख को समान रूप से अपनाना सीखें।
(घ) घृणा फैलाना बंद करके प्रेम के गीत गाएँ।
7. स्वर में पावक यदि नहीं, वृथा वंदन है,
वीरता नहीं, तो सभी विनय क्रंदन है।
सिर पर जिसके असिघात रक्त-चंदन है,
भ्रामरी उसी का करती अभिनंदन है।
दानवी रक्त से सभी पाप धुलते हैं,
ऊँची मनुष्यता के पथ भी खुलते हैं।
उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है,
सुख नहीं, धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है,
विज्ञान, ज्ञान-बल नहीं, न तो चिंतन है,
जीवन का अंतिम ध्येय स्वयं जीवन है।
सबसे स्वतंत्र यह रस जो अनघ पिएगा,
पूरा जीवन केवल, वह वीर जिएगा।
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूल भाव है- स्वर में उत्साह बनाए रखकर स्वतंत्र जीवन जीना।
प्रश्नः 2.
“सिर पर जिसके असिघात रक्त-चंदन है’ में अलंकार बताइए।
उत्तरः
‘सिर पर जिसके असिघात रक्त-चंदन है’ – पंक्ति में रूपक अलंकार है।
प्रश्नः 3.
मनुष्य की विनम्रता कब दुर्बलता बन जाती है?
उत्तरः
मनुष्य की विनम्रता उस समय दुर्बलता में बदल जाती है, जब व्यक्ति के स्वर में उत्साह नहीं रह जाता है।
प्रश्नः 4.
असिघात सहन करने का परिणाम क्या होता है?
उत्तरः
असिघात सहन करने वालों का अभिनंदन शक्ति की देवी दुर्गा करती है, दानवी शक्तियाँ कमज़ोर पड़ती हैं, पाप नष्ट होते और मनुष्यता के दरवाजे खुलते हैं।
प्रश्नः 5.
मानव जन्म का उद्देश्य क्या है? पूरा जीवन कौन जीता है?
उत्तरः
मानव जन्म का उद्देश्य धन, यश सुख कमाना और धर्म-दर्शन, विज्ञान ज्ञान, चिंतन आदि न होकर स्वयं जीवन ही है। वही व्यक्ति पूरा जीवन जीता है जो वीरतापूर्वक जीवन जीकर स्वतंत्र रहता है।
8. साक्षी है इतिहास हमीं पहले जागे हैं,
जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे हैं।
शत्रु हमारे कहाँ नहीं भय से भागे हैं ?
कायरता से कहाँ प्राण हमने त्यागे हैं ?
हैं हमीं प्रकंपित कर चुके, सुरपति का भी हृदय।
फिर एक बार हे विश्व तुम, गाओ भारत की विजय।
कहाँ प्रकाशित नहीं रहा है तेज हमारा,
दलित कर चुके शत्रु सदा हम पैरों द्वारा।
बतलाओ तुम कौन नहीं जो हमसे हारा,
पर शरणागत हुआ कहाँ, कब हमें न प्यारा!
बस युद्ध-मात्र को छोड़कर, कहाँ नहीं हैं हम सदय!
फिर एक बार हे विश्व! तुम गाओ भारत की विजय!
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव क्या है?
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है-भारतीयों की वीरता, उदारता एवं सदयता का वर्णन करना।
प्रश्नः 2.
‘जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे’-पंक्ति में निहित अलंकार का नाम लिखिए।
उत्तरः
‘जाग्रत सब हो रहे हमारे ही आगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
इतिहास किस बात का गवाह है?
उत्तरः
इतिहास इस बात का साथी है कि भारतीयों ने सबसे पहले विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद ही विश्व के लोगों में ज्ञान का प्रसार हुआ।
प्रश्नः 4.
काव्यांश के आधार पर भारतीयों की वीरता का वर्णन कीजिए।
उत्तरः
युद्ध में भारतीयों ने अपने शत्रुओं को हराया जिससे वे भागने के लिए विवश हुआ। भारतीयों ने कहीं भी कायरता नहीं दिखाई बल्कि अपनी वीरता से देवों का हृदय भी दहला दिया।
प्रश्नः 5.
कवि विश्व के लोगों से क्या आह्वान कर रहा है और क्यों?
उत्तरः
कवि विश्व के लोगों से भारतीयों का गुणगान करने के लिए कह रहा है क्योंकि भारतीयों ने शत्रुओं को हराया है, विश्व में ज्ञान का प्रकाश फैलाया है, शरणागत की रक्षा की है और रणक्षेत्र छोड़कर हर जगह अपनी सदयता का परिचय दिया है।
9. नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे
छाया प्यार के छलावे बिछाती
मुकुर से उठाई हुई
मुसकान मुसकराती
ये आँखें
नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं……
तनाव से झुर्रियाँ पड़ी कोरों की दरार से
शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियाँ
नहीं, वे मेरे देश की आँखें नहीं हैं…..
वन डालियों के बीच से
चौंकी अनपहचानी
कभी झाँकती हैं वे आँखें,
मेरे देश की आँखें,
खेतों के पार
मेड़ की लीक धरे
क्षिति-रेखा खोजती
सूनी कभी ताकती हैं
वे आँखें
डलिया हाथ से छोड़ा
और उड़ी धूल के बादल के
बीच में से झलमलाते
जाड़ों की अमावस में से
मैले चाँद-चेहरे सकुचाते
में टॅकी थकी पलकें
उठाई
और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं मेरे देश की आँखें……
प्रश्नः 1.
‘काल-सागरों के पार तैर आईं’ में निहित अलंकार बताइए।
उत्तरः
काल-सागरों के पार तैर आईं’ में रूपक अलंकार है।
प्रश्नः 2.
कवि को अपने देश की आँखें कहाँ से झाँकती प्रतीत होती हैं?
उत्तरः
कवि को अपने देश की आँखें वन में डालियों के बीच झाँकती प्रतीत होती हैं।
प्रश्नः 3.
कवि ने थकी पलकें कहाँ देखी हैं?
उत्तरः
कवि ने सकुचाती पलकें चाँद से सकुचाते चेहरे पर देखी।
प्रश्नः 4.
‘नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तरः
‘नहीं, ये मेरे देश की आँखें नहीं, कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि इन आँखों में छलावा एवं बनावटीपन है, इनमें प्यार का छलावा है तथा मुसकान दर्पण से चुराई हुई अर्थात् निश्छल नहीं है।
प्रश्नः 5.
किन-किन विशेषता वाली आँखों को कवि ने अपने देश की आँखें कहा है?
उत्तरः
कवि ने वन डालियों के बीच से झाँकने वाली, खेतों के पार से दिखने वाली, क्षिति रेखा की ओर देखकर कुछ खोजने वाली आँखों को अपने देश की आँखें कहा है।
10. इन नील विषाद गगन में;
सुख चपला-सा दुख-घन में,
चिर विरह नवीन मिलन में;
इस मरु-मरीचिका-वन में
छूटे जाते सूने पल;
खाली न काल का है निषंग।
वेदना विकल यह चेतन,
जड़ का पीड़ा से नर्तन;
लय-सीमा में यह कंपन,
अभिनयमय है परिवर्तन;
उलझा है चंचल मन-कुरंग।
आँसू कन-कन ले छल-छल,
सरिता भर रही दूंगचल;
सब अपने में हैं चंचल,
चल रहा यही कब से कुढंग।
करुणा गाथा गाती है,
यह वायु बही जाती है;
उषा उदास आती है,
मुख पीला ले जाती है;
बन मधु पिंगल संध्या सुरंग।
प्रश्नः 1.
‘सब अपने में हैं चंचल’ में कवि ने किन्हें चंचल कहा है?
उत्तरः
‘सब अपने में हैं चंचल’ में कवि ने प्रकृति के अंगों को चंचल कहा है।
प्रश्नः 2.
चेतन प्राणियों की दशा कैसी है?
उत्तरः
चेतन प्राणियों की दशा अधीरता भरी है। वे कष्ट से दुखी हैं।
प्रश्नः 3.
‘उषा उदास आती है’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तरः
‘उषा उदास आती है’ में मानवीकरण अलकार है।
प्रश्नः 4.
कवि ने दुख और सुख को कैसा बताया है ? मानव मन उसमें किसके समान उलझा हुआ है ?
उत्तरः
कवि ने दुख को नील गगन के समान विस्तृत अर्थात् चारों ओर व्याप्त और सुख को आकाश के बीच चमकने वाली बिजली के समान क्षणिक बताया है। इसी सुख को पाने के लिए मानव मन हिरन के समान भ्रमित हो रहा है।
प्रश्नः 5.
कवि ने किसे कुढंग कहा है और क्यों?
उत्तरः
कवि ने मनुष्य की दुख से मनुष्य की विकलता, जड़मय वस्तुओं के भी पीड़ित होने, संसार का अभिनय जैसा बदलाव आदि के तरीके को कुढंग कहा है, क्योंकि ऐसे परिवर्तन से प्रकृति और मनुष्य दोनों ही दुखी दिखाई दे रहे हैं।
11. मलयज का झोंका बुला गया
खेलते से स्पर्श से
रोम-रोम को कँपा गया
जागो-जागो
जागो सखि वसंत आ गया जागो
पीपल की सूखी खाल स्निग्ध हो चली
सिरिस ने रेशम से वेणी बाँध ली
नीम के भी बौर से मिठास देख
हँस उठी है कचनार की कली
टेसुओं की आरती सजा के
बन गयी वधू वनस्थली
स्नेह भरे बादलों से
व्योम छा गया
जागो जागो
जागो सखि वसंत आ गया जागो
चेत उठी ढीली देह में लहू की धार
बेंध गयी मानस को दूर की पुकार
गूंज उठा दिग दिगंत
चीन्ह के दुरंत वह स्वर बार
“सुनो सखि! सुनो बंधु!
प्यार ही में यौवन है यौवन में प्यार!”
आज मधुदूत निज
गीत गा गया
जागो जागो
जागो सखि वसंत आ गया, जागो!
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है-वसंत का आगमन और मनुष्य एवं प्रकृति में छाया उल्लास।
प्रश्नः 2.
‘हँस उठी है कचनार की कली’ में निहित अलंकार बताइए।
उत्तरः
‘हँस उठी है कचनार की कली’ में मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्नः 3.
वसंत का आज कौन-सा गीत सुना गया?
उत्तरः
वसंत द्वारा सुनाया गया गीत है –
“सुनो सखि! सुनो बंधु!
प्यार ही में यौवन है यौवन में प्यार।”
प्रश्नः 4.
वसंत का स्वागत करने के लिए किस-किस पेड़ ने क्या-क्या तैयारी की? काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तरः
वसंत का स्वागत करने के लिए पीपल ने अपनी सूखी खाल स्निग्ध (प्रेममय) हो उठी, सिरीस पर रेशमी फूल आ गए, नीम के बौर में आई मिठास देखकर कचनार की कली हँस पड़ी। वनस्थली वधू की भाँति सजकर टेसू के फूलों से आरती उतारने लगी।
प्रश्नः 5.
वसंत आते ही मनुष्य किस तरह उल्लसित हो गया?
उत्तरः
वसंत आते ही मनुष्य की अलसाई देह में रक्त संचार होने से नई चेतना दौड़ गई। लोगों के मन में हर्षोल्लास भर गया। उनकी उल्लसित आवाज़ से दिशाएँ गूंजने लगीं।
12. छोड़ो मत अपनी आन, शीश कट जाए,
मत झुको अनय पर भले व्योम फट जाए।
दो बार नहीं यमराज कंठ धरता है
मरता है जो, एक ही बार मरता है।
तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे!
जीना हो तो मरने से नहीं डरो रे!
स्वातंत्र्य जाति की लगन व्यक्ति की धुन है,
बाहरी वस्तु यह नहीं भीतरी गुण है।
नत हुए बिना जो अशनि-घात सहती है,
स्वाधीन जगत में वही जाति रहती है।
वीरत्व छोड़, पर का मत चरण गहो रे!
जो पड़े आन, खुद ही सब आग सहो रे!
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव क्या है?
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है-अपनी आन-बान और शान बनाए रखकर स्वतंत्र जीवन जीना तथा इसके लिए प्राणोत्सर्ग करने की प्रेरणा देना।
प्रश्नः 2.
वीरता छोड़कर दूसरों के सहारे जीने की बात नहीं सोचना चाहिए। यह भाव किस पंक्ति में व्यक्त हुआ है?
उत्तरः
यह भाव निम्नलिखित पंक्ति में प्रकट हो रहा है… वीरत्व छोड़, पर का मत चरण गहो रे!
प्रश्नः 3.
‘जो पड़े आन, खुद ही सब आग सहो रे!’ का आशय स्पष्ट कीजिए?
उत्तरः
भाव यह है कि जीवन में चाहे जितने भी कष्ट आएँ, उनका मुकाबला व्यक्ति को स्वयं करना चाहिए, दूसरों के सहारे की प्रतीक्षा नहीं देखनी चाहिए।
प्रश्नः 4.
व्यक्ति को अपने स्वाभिमान की रक्षा किस तरह करनी चाहिए और क्यों?
उत्तरः
व्यक्ति को अपनी आन की रक्षा करते हुए यदि भयानक संकट आ जाए और जान भी देनी पड़े, तो भी स्वाभिमान की रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि मनुष्य की मृत्यु एक ही बार होती है, दो बार नहीं।
प्रश्नः 5.
स्वतंत्रता के विषय में कवि ने क्या कहा? संसार में कौन-सी जाति रहती है?
उत्तरः
स्वतंत्रता के बारे में कवि ने कहा है कि यह मानवजाति की लगन होती है। वह व्यक्ति का भीतरी गुण है। जो जाति स्वतंत्रता बचाने के लिए तलवार की चोट सहती आई है, वही जाति स्वतंत्र रहती है।
13. सुरभित, सुंदर सुखद सुमन तुझ पर खिलते हैं,
भाँति-भाँति के सरस, सुधोपम फल मिलते हैं,
औषधियाँ हैं प्राप्त एक से एक निराली,
खाने शोभित कहीं धातु-वर रत्नोंवाली,
जो आवश्यक होते हमें, मिलते सभी पदार्थ हैं।
हे मातृभूमि वसुधा, धरा तेरे नाम यथार्थ हैं॥
दीख रही हैं कहीं दूर पर शैलश्रेणी,
कहीं धनावलि बनी हुई हैं तेरी वेणी,
नदियाँ पैर पखार रही हैं बनकर चेरी,
पुष्पों से तरु राशि कर रही पूजा तेरी,
मृदु मलय वायु मानो तुझे चंदन चारु चढ़ा रही।
हे मातृभूमि, किसका न तू सात्विक भाव बढ़ा रही?
क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है,
सुधामयी, वात्सल्यमयी तू प्रेममयी है,
विभवशालिनी, विश्वपालिनी, दुःखहीं है,
भयनिवारिणी, शांतिपालिनी, सुखकी है,
हे शरणदायिनी देवि, तू करती सब का त्राण है।
हे मातृभूमि, संतान हम तू जननी, तू प्राण है।
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव क्या है?
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है-हमारी मातृभूमि के गौरव का गुणगान करना।
प्रश्नः 2.
‘मृदु मलय वायु मानों तुझे चंदन चारु चढ़ा रही’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
उत्तरः
‘मृदुलमय वायु मानो तुझे चंदन चारु रही’ में निहित अलंकार का नाम बताइए।
प्रश्नः 3.
शरणदायिनी देवी किसे कहा गया है? वह किनकी रक्षा करती है ?
उत्तरः
शरण दायिनी देवी हमारी मातृभूमि अर्थात भारतमाता को कहा गया है, क्योंकि यह सभी की रक्षा करती है।
प्रश्नः 4.
वसुधा, धरा हमारी मातृभूमि के यथार्थ नाम क्यों हैं?
उत्तरः
हमारी मातृभूमि पर सुंदर फूल खिलकर उसकी सुंदरता बढ़ाते हैं। यहाँ के फल अमृत जैसे और यहाँ एक से एक औषधियाँ मिलती हैं। यहाँ हमारी ज़रूरत के सभी पदार्थ मिल जाते हैं, अतः वसुधा, धरा आदि इसके यथार्थ नाम हैं।
प्रश्नः 5.
प्रकृति हमारी मातृभूमि का सौंदर्य बढ़ाते हुए किस प्रकार सेवारत है, स्पष्ट कीजिए?
उत्तरः
हमारी मातृभूमि पर दूर दिखने वाली पर्वत श्रेणियाँ इसकी वेणी बनकर, सुंदरता बढ़ा रही हैं। नदियाँ इसकी दासी बनकर पैर पखार रही हैं, पेड़ अपने फूलों से इसकी पूजा कर रहे हैं और मलय पवन इसे चंदन की सुंदरता प्रदान कर रही है।
14. मेले से लाया हूँ इसको
छोटी-सी प्यारी गुड़िया,
बेच रही थी इसे भीड़ में
बैठी नुक्कड़ पर बुढ़िया।
मोल-भाव करके लाया हूँ
ठोक-बजाकर देख लिया,
आँखें खोल मूंद सकती है
वह कहती है पिया-पिया।
जड़ी सितारों से है इसकी
चुनरी लाल रंग वाली,
बड़ी भली हैं इसकी आँखें
मतवाली काली-काली।
ऊपर से है बड़ी सलोनी
अंदर गुदड़ी है तो क्या?
ओ गुड़िया तू इस पल मेरे
शिशुमन पर विजयी माया।
रलूँगा मैं तुझे खिलौनों की
अपनी अलमारी में,
कागज़ के फूलों की नन्ही
रंगारंग फुलवारी में।
नए-नए कपड़े-गहनों से
तुझको रोज़ सजाऊँगा,
खेल-खिलौनों की दुनिया में
तुझको परी बनाऊँगा।
प्रश्नः 1.
कवि गुड़ियाँ कहाँ से और किससे खरीद कर लाया?
उत्तरः
कवि मेले से गुड़िया खरीदकर लाया। वहाँ उसने भीड़ में नुक्कड़ पर बैठी बुढ़िया से खरीदा था।
प्रश्नः 2.
‘वह कहती है पिया-पिया’ में निहित अलंकार बताइए।
उत्तरः
‘वह कहती है पिया-पिया’ में ‘पुनरुक्ति प्रकाश’ एवं ‘मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्नः 3.
गुड़िया खरीदते समय कवि ने इसकी क्या विशेषताएँ देखीं?
उत्तरः
गुड़िया खरीदते समय कवि ने खूब मोल-भाव किया। इसका आँखें खोलना-बंद करना देखकर और ‘पिया-पिया’ की आवाज़ करने की विशेषताएँ देखीं।
प्रश्नः 4.
काव्यांश के आधार पर गुड़िया के सौंदर्य का चित्रण कीजिए।
उत्तरः
गुड़िया की चुनरी लाल रंग की है, जिस पर सितारे जड़े हैं। इसकी आँखें काली, मतवाली और सुंदर हैं। यह गुड़िया
देखने में बहुत सुंदर लग रही है।
प्रश्नः 5.
कवि गुड़िया को किस तरह सजाना-सँवारना चाहता है ?
उत्तरः
कवि गुड़िया को अपने खिलौनों की अलमारी में रखना चाहता है, जहाँ कागज़ की छोटी रंग-बिरंगी फुलवारी है। ___कवि उसे रोज़ नए-नए कपड़े-गहने पहनाकर सजाकर खेल-खिलौनों की दुनिया में परी बनाना चाहता है।
15. चंदा-तारों-सी सहज कांति, नदियों में है मुसकान भरी,
है पवन झकोरों में दुलार खेतों में है दौलत बिखरी,
पग – पग मेरा विश्वास भरा,
तप से है यह जीवन निखरा,
प्रखर कर्म का पाठ सतत
पढ़ती मैं भारत माता हूँ॥
वज्र सदृश विपदाओं को भी अनायास सह लेती हूँ,
सुधादान कर औरों को, मैं विष पीकर मुसकाती हूँ,
धीरज का पाठ पढ़ाती हूँ,
गौरव का मार्ग दिखाती हूँ,
मैं सहज बोध, मैं सहज शक्ति
सुविवेकी भारत माता हूँ॥
मूर्तियाँ बना डाली सजीव, अनगढ़ पत्थर को काट-काट,
बंधुता-प्रेम को फैलाया, अपना ही अंतर बाँट-बाँट,
जिसके गीतों से जगत् मुग्ध,
जिसके नृत्यों पर जगत् मुग्ध,
जिसकी कविता-धारा अविरल
बहती वह भारत माता हूँ॥
प्रश्नः 1.
उपर्युक्त गद्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
गद्यांश का मूलभाव है-भारतमाता की समृद्धि, धैर्य सहनशीलता एवं सौंदर्य का वर्णन करना।
प्रश्नः 2.
‘चंदा-तारों-सी सहज कांति’ में अलंकार का नाम लिखिए।
उत्तरः
‘चंदा तारों-सी सहज कांति’ में उपमा अलंकार है।
प्रश्नः 3.
खेतों में है दौलत बिखरी’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
खेतों में बिखरी है दौलत का भाव यह है कि खेतों में हरी-भरी लहलहाती फसलों के रूप में दौलत बिखरी है।
प्रश्नः 4.
भारत माता की दो प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख काव्यांश के आधार पर कीजिए।
उत्तरः
(क) भारत माता बज्र के समान विपदाओं को भी सह लेती है और धैर्य धारण करती है।
(ख) भारतमाता दूसरों को अमृत देकर विष का पान स्वयं कर जाती है।
प्रश्नः 5.
भारतीयों ने भारतमाता का गौरव किस तरह बढ़ाया है ?
उत्तरः
भारतीयों ने अनगढ़ पत्थरों को काट-काटकर सजीव मूर्तियाँ बना दी हैं। इन कार्यों से भारत माता का गौरव बढ़ा है।
16. नमन उन्हें मेरा शत बार!
सूख रही है बोटी-बोटी,
मिलती नहीं घास की रोटी,
गढ़ते हैं इतिहास देश का, सहकर कठिन क्षुधा की मार।
नमन उन्हें मेरा शत बार!
जिनकी चढ़ती हुई जवानी
खोज रही अपनी कुरबानी,
जलन एक जिनकी अभिलाषा, मरण एक जिनका त्योहार।
नमन उन्हें मेरा शत बार!
सुखी स्वयं जंग का दुख लेकर,
स्वयं रिक्त सबको सुख देकर,
जिनका दिया अमृत जग पीता, कालकूट उनका आहार।
नमन उन्हें मेरा शत बार!
नमन उन्हें मेरा शत बार!
अर्ध नग्न जिनकी प्रिय माया,
शिशु विषण्ण-मुख, जर्जर-काया;
रण की ओर चरण दृढ़ जिनके, मन के पीछे करुण पुकार।
वीर, तुम्हारा लिए सहारा,
टिका हुआ है भूतल सारा,
होते तुम न कहीं, तो कब का उलट गया होता संसार।
नमन उन्हें मेरा शत बार!
चरण-धूलि दो, शीश लगा लूँ,
जीवन का बल-तेज जगा लूँ,
मैं निवास जिस मूक स्वप्न का, तुम उसके सक्रिय अवतार।
नमन उन्हें मेरा शत बार!
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव देशभक्त वीरों की आज़ादी पाने की ललक, उसके लिए किया गया त्याग, बलिदान और दूसरों, को सुखी देखने की अभिलाषा का वर्णन है।
प्रश्नः 2.
‘स्वयं रिक्त सबको सुख देकर’ में निहित अलंकार का नाम लिखिए।
उत्तरः
‘स्वयं रिक्त सबको सुख देकर’ में अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
‘जलन एक जिनकी अभिलाषा’ में किसकी जलन और किस अभिलाषा का वर्णन है?
उत्तरः
‘जलन एक जिनकी अभिलाषा’ में देशभक्तों की जलन और देश को आजाद कराने की उत्कट इच्छा का वर्णन है।
प्रश्नः 4.
काव्यांश के आधार पर देशभक्तों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तरः
काव्यांश के आधार पर देशभक्तों की विशेषताएँ हैं
(क) वे जग का दुख लेकर स्वयं को सुखी महसूस करते हैं।
(ख) वे दूसरों को सुख देकर रिक्त रहते हैं। उन्हें अपने सुख की चिंता नहीं रहती है।
(ग) वे दुनिया को अमृत देकर स्वयं विषपान करते हैं।
प्रश्नः 5.
देशभक्त किन विषम परिस्थितियों में देश का इतिहास गढ़ते हैं ?
उत्तरः
देश भक्तों को आजादी पाने की इच्छा रखते हुए विषम परिस्थितियों में जीना पड़ता है। उन्हें कई-कई दिनों तक भूखे रहकर, भूख की कठिन मार सहते हुए दिन बिताना पड़ता है, फिर भी वे देश का इतिहास गढ़ते हैं।
17. मनमोहिनी प्रकृति की जो गोद में बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है?
जिसके चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है,
जिसका मुकुट हिमालय, वह देश कौन-सा है ?
नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं,
सींचा हुआ सलोना, वह देश कौन-सा है ?
जिसके बड़े रसीले फल-कंद-नाज मेवे,
सब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है?
जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे,
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सा है ?
मैदान-गिरि-वनों में हरियालियाँ लहकतीं,
आनंदमय जहाँ है, वह देश कौन-सा है ?
जिसके अनंत धन से धरती भरी पड़ी है,
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है?
सबसे प्रथम जगत् में जो सभ्य था यशस्वी,
जगदीश का दुलारा, वह देश कौन-सा है ?
पृथ्वी-निवासियों को जिसने प्रथम जगाया,
शिक्षित किया, सुधारा, वह देश कौन-सा है?
जिसमें हुए अलौकिक तत्त्वज्ञ ब्रह्मज्ञानी,
गौतम, कपिल, पतंजलि वह देश कौन-सा है ?
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव क्या है?
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है-हमारे देश की सभ्यता-संस्कृति, समृद्धि का यशोगान करते हुए दुनिया को इसकी महत्ता बताना।
प्रश्नः 2.
‘सुख स्वर्ग-सा जहाँ है’ में निहित अलंकार बताइए।
उत्तरः
‘सुख स्वर्ग-सा जहाँ है’ में उपमा और अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्नः 3.
हमारे देश में खुशबूदार फूल दिन-रात खिले रहते हैं। यह भाव व्यक्त करने वाली पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तरः
उक्त भाव व्यक्त करने वाली काव्य पंक्तियाँ हैं
जिसमें सुगंध वाले सुंदर प्रसून प्यारे,
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सा है! ।
प्रश्नः 4.
हमारे देश की नदियों की क्या विशेषता है? ये नदियाँ देश की समृद्धि कैसे बढ़ाती हैं ?
उत्तरः
हमारे देश की नदियों में अमृत की धारा निरंतर बहती है। जिससे फसलों की सिंचाई होती है। इसी कारण यहाँ पैदा होने फल बड़े रसीले और कंद, मूल मेवे आदि पर्याप्त मात्रा में पैदा होते हैं। इससे यहाँ हरियाली एवं खुशहाली छाई रहती है।
प्रश्नः 5.
विश्व में ज्ञान के प्रचार-प्रसार में हमारे देश का क्या योगदान रहा है? इस काम में किन ज्ञानियों ने मदद की?
उत्तरः
हमारा देश ही वह देश है जहाँ पर ज्ञान का आलोक सबसे पहले फैला। यहीं से ज्ञान का प्रचार-प्रसार अन्य देशों में हुआ। उस कार्य में अलौकिक तत्व एवं ब्रह्म ज्ञानी गौतम, कपिल पतंजलि जैसे मनीषियों ने मदद की।
18.ऐ अमरों की जननी, तुझको शत-शत बार प्रणाम।
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!
तेरे उर में शायित गांधी, बुद्ध, कृष्ण और राम,
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम!
हिमगिरि-सा उन्नत तव मस्तक
तेरे चरण चूमता सागर,
श्वासों में हैं वेद-ऋचाएँ
वाणी में है गीता का स्वर,
ऐ संसृति की आदि तपस्विनि, तेजस्विनि अभिराम।
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ।
हरे-भरे हैं खेत सुहाने
फल-फूलों से युक्त वन-उपवन
तेरे अंदर भरा हुआ है ।
खनिजों का कितना व्यापक धन
मुक्तहस्त तू बाँट रही है सुख-संपत्ति, धन-धाम!
प्रेम-दया का इष्ट लिए तू
सत्य-अहिंसा तेरा संयम
नई चेतना, नई स्फूर्ति-युत
तुझमें चिर-विकास का है क्रम
चिर नवीन तू जरा-मरण से मुक्त सबल उद्दाम।
एक हाथ में न्याय-पताका
ज्ञान-दीप दूसरे हाथ में
जग का रूप बदल दे, हे माँ!
कोटि-कोटि हम आज साथ में
गूंज उठे ‘जय हिंद’ नाद से सकल नगर औ ग्राम।
मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम ।
प्रश्नः 1.
काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तरः
काव्यांश का उपयुक्त शीर्षक है-‘मातृ-भू, शत-शत बार प्रणाम।’
प्रश्नः 2.
‘कोटि-कोटि हम आज साथ में’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
‘कोटि-कोटि हम आज साथ में’ का आशय यह है कि आज करोड़ों भारतवासी एक होकर मातृभूमि के उन्नति के
लिए प्रयासरत हैं।
प्रश्नः 3.
‘हमारी मातृभूमि अमर-अजर तथा सबल है’-यह भाव व्यक्त करने वाली पंक्ति लिखिए।
उत्तरः
उक्त भाव व्यक्त करने वाली पंक्ति है –
चिर नवीन तू जरा-मरण से मुक्त सबल उद्दाम।
प्रश्नः 4.
मातृभूमि के स्वरूप का वर्णन करते हुए बताइए कि कवि ने उसे तेजस्विनि क्यों कहा है?
उत्तरः
हमारी मातृभूमि का मस्तक हिमगिरि हिमालय है, सागर उसके चरण चूमता है। मातृभूमि का यह स्वरूप अत्यंत सुंदर है। मातृभूमि की साँसों में वेद और ऋचाएँ हैं और वाणी में गीता का स्वर है, इसलिए कवि ने उसे तपस्विनि-तेजस्विनि । कहा है।
प्रश्नः 5.
मातृभूमि के सौंदर्य और सुख का कारण क्या है? मातृभूमि इसका उपयोग किस तरह कर रही है?
उत्तरः
मातृभूमि के सौंदर्य का कारण हरे-भरे खेत, फल-फूल से युक्त वन-उपवन और खनिज के रूप में अतुलित धन का भंडार है। मातृभूमि इस धन को मुक्त हाथ से बाँट कर लोगों का कल्याण कर रही हैं।
19. नवीन कंठ दो कि मैं नवीन गान गा सकूँ,
स्वतंत्र देश की नवीन आरती सजा सकूँ!
नवीन दृष्टि का नया विधान आज हो रहा,
नवीन आसमान में विहान आज हो रहा,
खुली दसों दिशा खुले कपाट ज्योति-द्वार के
विमुक्त राष्ट्र-सूर्य भासमान आज हो रहा।
युगांत की व्यथा लिए अतीत आज रो रहा,
दिगंत में वसंत का भविष्य बीज बो रहा,
सुदीर्घ क्रांति झेल, खेल की ज्वलंत आग से
स्वदेश बल सँजो रहा, कड़ी थकान खो रहा।
प्रबुद्ध राष्ट्र की नवीन वंदना सुना सकूँ,
नवीन बीन दो कि मैं अगीत गान गा सकूँ!
नए समाज के लिए नवीन नींव पड़ चुकी,
नए मकान के लिए नवीन ईंट गढ़ चुकी,
सभी कुटुंब एक, कौन पास, कौन दूर है
नए समाज का हरेक व्यक्ति एक नूर है।
कुलीन जो उसे नहीं गुमान या गरूर है
समर्थ शक्तिपूर्ण जो किसान या मजूर है।
भविष्य-द्वार मुक्त से स्वतंत्र भाव से चलो,
मनुष्य बन मनुष्य से गले मिले चले चलो,
समान भाव के प्रकाशवान सूर्य के तले
समान रूप-गंध फूल-फूल से खिले चलो।
प्रश्नः 1.
काव्यांश का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
काव्यांश का मूलभाव है- लंबी गुलामी से मुक्ति मिलने तथा देश में नई आशा, नया, उत्साह तथा नवनिर्माण की
कल्पना का वर्णन करना।
प्रश्नः 2.
कवि नई बीन क्यों माँग रहा है?
उत्तरः
कवि नई बीन इसलिए माँग रहा है ताकि अतीत के गीत गा सके।
प्रश्नः 3.
अपनी मनुष्यता बनाए रखकर प्रेम से चलने का संदेश देने वाली पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तरः
अपनी मनुष्यता बनाए रखकर प्रेम से चलने का संदेश देने वाली पंक्ति है- “मनुष्य बन मनुष्य से गले मिले चले चलो।”
प्रश्नः 4.
कवि को ऐसा क्यों लगता है कि अब समाज में नव निर्माण होगा?
उत्तरः
कवि देख रहा है कि नए समाज की नींव पड़ चुकी है। इसके लिए नई ईंट गढ़ी जा चुकी है। लोगों में एकता बढ़ रही है, किसान और मज़दूर शक्तिशाली हो रहे हैं। इससे लगता है कि समाज में अब नव निर्माण होगा।
प्रश्नः 5.
देश में अतीत और नवीन के मेल से उत्पन्न स्थिति का वर्णन कीजिए।
उत्तरः
स्वतंत्रता के बाद अब अतीत और नवीन का मेल हो रहा है। एक ओर अतीत अपना युगांत होने की व्यथा रो रहा है तो दूसरी ओर सुखद भविष्य के बीज रोपे जा रहे हैं। लोग अपनी थकान त्यागकर नई ऊर्जा से भर उठे हैं।
20. अरे निर्जन वन के निर्मल-निर्झर!
एक एकांत प्रांत-प्रांगण में
किसे सुनाते सुमधुर स्वर?
अरे निर्जन वन के निर्मल निर्झर!
अपना ऊँचा स्थान त्यागकर,
क्यों करते हो अध: पतन?
कौन तुम्हारा वह प्रेमी है,
जिसे खोजते हो वन-वन?
विरह-व्यथा में अश्रु बहाकर,
जलमय कर डाला सब तन।
क्या धोने को चले स्वयं,
अविदित प्रेमी के पद-रज-कन?
लघु पाषाणों के टुकड़े भी,
तुमको देते हैं ठोकर!
क्षणभर में ही विचलित होकर,
कंपित होते हो गीत खोकर!
प्रश्नः 1.
लघु पाषाणों के टुकड़े भी, तुमको देते हैं ठोकर।-पंक्ति में निहित अलंकार का नाम बताइए।
उत्तरः
उक्त पंक्ति में मानवीकरण अलंकार है।
प्रश्नः 2.
झरने को नीचे गिरकर बहते देख कवि क्या कल्पना करता है?
उत्तरः
झरने को नीचे गिरकर बहते देखकर कवि यह कल्पना करता है कि जंगल में यहाँ-वहाँ बहकर झरना अपने किसी प्रेमी को खोज रहा है।
प्रश्नः 3.
लघु पाषाणों के टुकड़ों की ठोकर का झरने पर क्या असर होता है?
उत्तरः
लघु पाषाणों के टुकड़ों के ठोकर से झरना पल भर में ही विचलित हो जाता है, वह काँपने लगता है और उसका गीत खो जाता है।
प्रश्नः 4.
कवि सुनसान वन में किससे क्या-क्या प्रश्न करता है? किन्हीं दो प्रश्नों का उल्लेख कीजिए।
उत्तरः
कवि सुनसान वन में झरने से निम्नलिखित प्रश्न करता है
(क) झरना एकांत-सुनसान जंगल में अपना गीत किसे सुना रहा है?
(ख) अपना ऊँचा स्थान त्यागकर नीचे क्यों आता है ?
प्रश्नः 5.
झरने को जलमय हुआ देख कवि क्या सोचता है और उससे क्या पूछता है ?
उत्तरः
झरने को जलमय देखकर कवि सोचता है कि झरना विरह व्यथित होकर आँसू बहाने के कारण जलमय हो गया है। इन आँसुओं से वह अपने अविदित प्रेमी के पैरों की धूल धोना चाहता है।